Preachings of Buddha
Saturday, May 31, 2025
गते गते पारगते पारसंगते बोधि स्वाहा
Friday, February 7, 2025
आनापानसति सुत्त भाग-२
आनापानसति सुत्त जारी भाग-२,
आनापानसति-विधि !
118. आनापानसति-सुत्त
- उपरि-पण्णासक-
(मज्झिमनिकाय)
-आनापानसति-विधि-
🌳
" भिक्खुओं !
किस प्रकार भावना=बहुलीकरण करने पर, आनापानसति महाफलप्रद=महानृशंस्य होती है?—
🔹
भिक्खुओं !
भिक्खु अरण्य, वृक्ष-मूल या शून्यागार में बैठता है, आसन मार, काया को सीधा रख, सति (=स्मृति) को सन्मुख, उपस्थित कर,
वह स्मृतिपूर्वक श्वास लेता है,
स्मृतिपूर्वक श्वास छोड़ता है।
🔹
दीर्घ श्वास लेते समय—‘दीर्घ श्वास ले रहा हूँ’—जानता है।
दीर्घ श्वास छोडते समय—‘दीर्घ श्वास छोड़ रहा हूँ’—जानता है। -१
🔹
ह्रस्व-श्वास लेते समय—‘ह्रस्व श्वास ले रहा हूँ’—जानता है।
ह्रस्व-श्वास छोडते समय—‘ह्रस्व श्वास छोड़ रहा हूँ’—जानता है। -२
🔹
सारी काया (की स्थिति) को अनुभव करते श्वास लूँगा—सीखता है।
सारी काया (की स्थिति) को अनुभव करते श्वास छोडूँगा—सीखता (=अभ्यास करता) है। -३
🔹
कायिक संस्कारों (=हर्कतों, क्रियाओं) को रोक कर श्वास लूँगा—अभ्यास करता है।
कायिक संस्कारों (=हर्कतों, क्रियाओं) को रोक कर श्वास छोडूँगा—अभ्यास करता है। -४
🔹
प्रीति-अनुभव करते आश्वास (=श्वास लेना) लूँगा—अभ्यास करता है।
प्रीति-अनुभव करते प्रश्वास (=श्वास छोडना) छोडूँगा—अभ्यास करता है। -५
🔹
सुख-अनुभव करते आश्वास (=श्वास लेना) लूँगा—अभ्यास करता है।
सुख-अनुभव करते प्रश्वास (=श्वास छोडना) छोडूँगा—अभ्यास करता है। -६
🔹
चित्त-संस्कारों (=चित्त की क्रियाओं) को अनुभव करते आश्वास लूँगा’— अभ्यास करता है।
चित्त-संस्कारों (=चित्त की क्रियाओं) प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -७
🔹
चित्त-संस्कार को रोक कर आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
चित्त-संस्कार को रोक कर प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -८
🔹
चित्त को अनुभव करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
चित्त को अनुभव करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -९
🔹
चित्त् को प्रमुदित करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
चित्त् को प्रमुदित करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१०
🔹
चित्त को समाहित करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
चित्त को समाहित करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -११
🔹
चित्त को विमुक्त करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
चित्त को विमुक्त करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१२
🔹
(सभी वस्तुओं/धर्मों के) अनित्य (होने) का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
(सभी वस्तुओं/धर्मों के) अनित्य (होने) का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१३
🔹
(सभी वस्तुओं/धर्मों के) विराग का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
(सभी वस्तुओं/धर्मों के) विराग का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१४
🔹
(सभी वस्तुओं/धर्मों के) निरोध का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
(सभी वस्तुओं/धर्मों के) निरोध का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१५
🔹
(सभी वस्तुओं/धर्मों के) प्रतिनिस्सर्ग (=त्याग) का ख्याल करते आश्वास लूँगा— अभ्यास करता है।
(सभी वस्तुओं/धर्मों के) प्रतिनिस्सर्ग (=त्याग) का ख्याल करते प्रश्वास छोडूँगा— अभ्यास करता है। -१६
🛞
भिक्खुओं !
इस प्रकार भावित=बहुलीकृत आनापानसति महाफलप्रद=महानृशंस होती है। "
- सुत्त जारी
- श्रंखला जारी
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आनापानसति-सुत्त
उपोसथ-दिवस,
पवारणा-दिवस,
कठिन-चीवर-दान-दिवस व
वस्सावास-समाप्ति-दिवस पर भगवान् बुद्ध द्वारा प्रतिपादित सबसे महत्वपूर्ण सुत्त - आनापानसति-सुत्त
(बोधिसत्व सिद्धार्थ गौतम इसी आनापान-सति-भावना के द्वारा अरहत्व व बुद्धत्व को प्राप्त हुए थे)।
118. आनापानसति-सुत्त
- उपरि-पण्णासक-
(मज्झिमनिकाय)
{कौमुदी (=चाँदनी; कार्तिक-पूर्णिमा) चातुर्मासी}
🙏
ऐसा मैंने सुना —
एक समय भगवान् ,
आयुष्मान् सारिपुत्र,
आयुष्मान् महामौद्गल्यायन,
आयुष्मान् महाकाश्यप,
आयुष्मान् महाकात्यायन,
आयुष्मान् महाकोट्ठित (=कोष्ठिल),
आयुष्मान् महाकप्पिन,
आयुष्मान् महाचुन्द,
आयुष्मान् अनुरूद्ध,
आयुष्मान् रेवत,
आयुष्मान् आनन्द, और दूसरे अभिज्ञात (=प्रसिद्ध) अभिज्ञात स्थविर श्रावको के साथ श्रावस्ती, मृगारमाता के प्रासाद, पूर्वाराम में विहार करते थे।
🌀
उस समय स्थविर (=वृद्ध) भिक्खु नये भिक्खुओं को उपदेश=अनुशासन करत थे।
🌀
कोई कोई स्थविर भिक्खु दस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
🌀
कोई कोई स्थविर भिक्खु बीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
🌀
कोई कोई स्थविर भिक्खु तीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
🌀
कोई कोई स्थविर भिक्खु चालीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
🎯
स्थविर भिक्खुओं द्वारा उपदेशित=अनुशासित हो, वह नये भिक्खु अच्छी तरह (=उदारं) पूर्व के बाद पीछे आने वाले (विषय) को समझते थे।
🎯
उस समय, उपोसथ को पंचदशी प्रवारणा की पूर्णिमा (कार्तिक-पूर्णिमा) की रात को,
भगवान् भिक्खु संघ से घिरे खुली जगह में बैठे थे।
तब भगवान् ने चुपचाप (बैठे) भिक्खु संघ को देखकर, भिक्खुओं को संबोधित किया—
🌳
“भिक्खुओं !
मैने इस प्रतिपद् (=मार्ग) के लिये उद्योग किया है,
इस प्रतिपद के लिये मैं उद्योग-युक्त-चित्त वाला रहा हूँ।
इसलिये भिक्खुओं !
संतुष्ट (=सोमत्त) हो,
अप्राप्त की प्राप्ति=अनधिगत के अधिगत,
न-साक्षात्कार किये के साक्षात्कार के लिये और भी उद्योग (=वीर्यारम्भ) करो।
🌳
भिक्खुओं !
यहीं श्रावस्ती में मैं कौमुदी (=चाँदनी; कार्तिक-पूर्णिमा) चातुर्मासी को बिताऊँगा।”
🌀
जनपदवासी (=देहात के) भिक्खुओं ने सुना, कि ,-
भगवान् कौमुदी चातुर्मासी (=कार्तिक-पूर्णिमा) को श्रावस्ती में बितावेंगे।
तब जनपदवासी भिक्खु भगवान् के दर्शन के लिये श्रावस्ती में आने लगे।
🌀
वह स्थविर भिक्खु और भी सन्तुष्ट हो नये भिक्खुओं को उपदेश=अनुशासन करते।
कोई कोई स्थविर भिक्खु दस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
कोई कोई स्थविर भिक्खु बीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
कोई कोई स्थविर भिक्खु तीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
कोई कोई स्थविर भिक्खु चालीस भिक्खुओं को भी उपदेश=अनुशासन करते थे;
🎯
स्थविर भिक्खुओं द्वारा उपदेशित=अनुशासित हो, वह नये भिक्खु अच्छी तरह (=उदारं) पूर्व के बाद पीछे आने वाले (विषय) को समझते थे।
उस समय उपोसथ को पंचदशी पूर्णा चातुर्मासी कौमुदी पूर्णिमा की रात को भगवान् भिक्खु-संघ से घिरे खुली जगह में बैठे थे।
तब भगवान् ने चुपचाप (बैठे) भिक्खु-संघ को देख कर, भिक्खुओं को संबोधित किया —
- भिक्खु-संघ -
(२४ गुणधर्म)
🌳
“भिक्खुओं !
यह परिषद् प्रलाप (=शोर-गुल) रहित है (=निष्प्रलाप्य है,
भिक्खुओं !
यह परिषद् सार में प्रतिष्ठित है, शुद्ध है यह परिषद्;
उस प्रकार का, भिक्खुओं ! यह भिक्खु-संघ है।
उस प्रकार की, भिक्खुओं ! यह परिषद् है। (१)
🌀
भिक्खुओं !
ऐस भगवतो सावक-संघो (इस प्रकार की यह परिषद् )
🔸आहुनेय्यो, (=सत्कार के योग्य)
🔸पाहुनेय्यो, (=अतिथित्य के योग्य)
🔸दक्खिणेय्यो, (=दान-देने के योग्य)
🔸अण्जलि-करणियो, (=हाथ जोडने योग्य)
🔸अनुत्तरं पुण्णक्खेत्तं लोकस्सा'ति (=लोक में पुण्य के (बोने) का अनुपम क्षेत्र (खेत) है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२)
🌀
भिक्खुओं !
जैसी परिषद् को थोडा देने पर बहुत (फल) हाता है;
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है,
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (३)
🌀
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार की परिषद् है;
जैसी परिषद् को बहुत (दान) देने पर बहुत (फल) होता है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (४)
🌀
भिक्खुओं !
जिस प्रकार (की परिषद्) का लोगो को दर्शन भी दुर्लभ है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (५)
🌀
भिक्खुओं !
जिस प्रकार (की परिषद्) को योजनों दूर होने पर (पाथेय की) पोटली बाँधकर भी जाना योग्य है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (६)
-चत्तारि-अरिय-पूरिस-पुग्गला-संघ-
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में -
🔸आसव-खय (आश्रव-क्षय) किये,
🔸 संसार-चक्र (भव-चक्र) को तोड़ चुके (=भव-संस्करण मुक्त),
🔸कृतकृत्य,
🔸भारमुक्त,
🔸सद्-अर्थ (=निर्वाण) को प्राप्त,
🔸संयोजन (=भव-बंधन) मुक्त,
🔸सम्यग-ज्ञान द्वारा मुक्त (=अर्हत् भिक्खु) है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (७)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में ऐसे भिक्खु है, जो -
🔸पाँच अवर-भागीय-संयोजनों के क्षय से,
🔸औपपातिक (=देव) हो वहाँ (शुद्धावास-लोक में) निर्वाण प्राप्त करने वाले,
🔸उस लोक में यहाँ न आने वाले (=अनागामी) है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (८)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में ऐसे भिक्खु हैं, जो -
🔸तीन संयोजनो के क्षय से व राग-द्वेष-मोह के निर्बल (=तनु) हो जाने से सकृदागामी (=सकदागामी) हैं,
🔸(वह) एक ही बार (और) इस लोक में आकर दुख का अन्त करेंगे।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (९)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸तीन संयोजनों के क्षय से स्रोतआपन्न (=सोत-आपन्न),
🔸(निर्वाण-मार्ग से) न पतित होने वाले,
🔸नियत (=निश्चित), सम्बोधिपरायण (=परमज्ञान को प्राप्त करने वाले) है।
🔸(वह) सात ही बार (और) इस लोक में आकर दुख का अन्त करेंगे।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१०)
-37 बोधि-पक्खिय-भावित-संघ-
(4+4+4+5+5+7+8=37)
🌳
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸चारों स्मृति-प्रस्थान की भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (११)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸चार सम्यक्-प्रधानों की भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१२)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸चार ऋद्धिपादों भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१३)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸पाँच इन्द्रियों भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१४)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸पाँच बलों भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१५)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸सात बोध्यंगों कि भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१६)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸आर्य-अष्टांगिक मार्ग भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१७)
-ब्रह्मविहारी-संघ-
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸मैत्री-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१८)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸करूणा-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (१९)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸मुदिता-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२०)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸उपेक्षा-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२१)
-असुभ-अनिच्च-भावित-संघ-
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸अशुभ-भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२२)
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸अनित्य-संज्ञा में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है। (२३)
-आनापानसति-भावित-संघ-
🌀
भिक्खुओं !
इस भिक्खु-संघ में इस प्रकार के भी भिक्खु हैं, जो -
🔸अनापान-सति भावना में तत्पर हो विहरते है।
भिक्खुओं !
(यह) उस प्रकार का भिक्खु-संघ है, (यह) उस प्रकार की परिषद् है।' (२४)
-आनापानसति-महाफलप्रद-
🌳
“भिक्खुओं !
(कैसी) अनापानसति की भावना करने पर, (अनापानसति अभ्यास को) बढाने पर महाफलप्रद=महानृशंस्य होती है।
(१)
भिक्खुओं !
भिक्खु, अनापानसति की भावना=बहुलीकरण करने पर -
🔸चार स्मृति-प्रस्थानों (चत्तारो-सति-पट्ठान) को परिपूर्ण करता है।
(२)
फिर भिक्खुओं!
भिक्खु, चार स्मृति-प्रस्थान (चत्तारो-सति-पट्ठान) के बहुलीकृत होने पर -
🔸सात बोध्यंगों (सत्त-बोज्झंग) को परिपूर्ण करता है।
(३)
और फिर भिक्खुओं!
भिक्खु, सात बोध्यंगों (सत्त-बोज्झंग) को परिपूर्ण करने पर -
🔸विज्जा (विद्या) और विमुक्ति (विमुक्ति) को परिपूर्ण करता है।"
- सुत्त जारी
टिप्पणी -
1. अनापानसति से चत्तारो-सति-पट्ठान,
2. चत्तारो-सति-पट्ठान से सत्त-बोज्झंग,
3. सत्त-बोज्झंग से विज्जा-विमुत्ति।
- श्रंखला जारी
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Sunday, September 1, 2024
धम्म क्या है ?
आचार्य दीपंकर श्रीज्ञान तिब्बत में प्रवास कर रहे थे। वे सिद्ध अतीशा के नाम से अधिक सुविख्यात है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के वे महास्थविर थे। तिब्बत के सम्राट ल्ह लामा येशे होद द्वारा सन् 1042 में उन्हें श्रद्धापूर्वक तिब्बत आमंत्रित किया गया था।
आचार्य दीपंकर श्रीज्ञान एक विहार में प्रवास कर रहे थे। उन्होंने देखा, एक भिक्षु प्रतिदिन आता है और स्तूप की परिक्रमा करता है। एक दिन उन्होंने उसको बुलाया और कहा-स्तूप की परिक्रमा करना ठीक है लेकिन अच्छा होता कि तुम धम्म करते।भिक्षु ने सोचा कि शायद महास्थविर मुझे सूत्रपाठ के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अगले दिन से भिक्षु स्तूप के सामने आसन बिछा कर बैठता और धम्म सूत्रों का पाठ करता।
सिद्ध अतीशा ने उसे एक दिन फिर बुलाया और कहा-सूत्रों का पाठ करना मंगलमय है लेकिन अच्छा होता कि तुम धम्म का अभ्यास करते।
भिक्षु ने फिर मनन किया कि शायद भारत से आए यह आचार्य प्रवर मुझे ध्यान करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अगले दिन से स्तूप के सामने आसन बिछा कर वह ध्यान भावना करने लगा।
ध्यान कर जब वह जाने लगा तो दीपंकर श्रीज्ञान ने उसे फिर बुलाया, कहा-ध्यान करना श्रेष्ठ है लेकिन धम्म का पालन करना सर्वश्रेष्ठ है।
भिक्षु का ज्ञान जवाब दे गया। उसने सिद्ध अतीशा के सामने सिर झुका कर समर्पण कर दिया और विनयपूर्वक पूछा हे महास्थविर। आप ही बताएँ कि धम्म करना क्या है? स्तूप की परिक्रमा करना, सूत्र पाठ करना, ध्यान करना धम्म का पालन नहीं है तो धम्म का पालन क्या है?
आचार्य दीपंकर श्रीज्ञान ने कहा-मन के विकारों का परित्याग करना धम्म का अभ्यास है, आसक्तियों और तृष्णाओं से मन को मुक्त करने का यत्न करना धम्म का पालन है...।
भिक्षु को समझ में आया कि धम्म करना अर्थात मन को विकार मुक्त करने का यत्न करना है।
Sunday, April 7, 2024
एक महान भिक्षु की कथा || कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ेगा
Saturday, April 6, 2024
पराभव सुत्त - इन्सान के पतन के कारणॊं के लिये भगवान् बुद्ध के 12 अनमोल प्रवचन
पराभव सुत्त - इन्सान के पतन के कारणॊं के लिये भगवान् बुद्ध के 12 अनमोल प्रवचन
1. धम्म की कामना करनेवाले की उन्नति होती हैं, तो धम्म से द्वेष करने वाले का पराभव होता है ।
2. जिसे अच्छे लोग अप्रिय लगते हो एवं बुरे लोग प्रिय लगते हो, अशांति वाले धर्म ही जिसे प्रिय हो उसका पराभव होता है ।
3. जो निद्रालु हो, वाचाल हो, निरुद्योगी हो, आलसी हो, क्रोधी हो उसका पराभव होता है ।
4. विपुल सामग्री होने पर भी जो अपने बूढ़े माता पिता का भरण पोषण नहीं करता उसका पराभव होता है ।
5. जो (शील, समाधी, प्रज्ञा में प्रतिष्ठित) श्रेष्ठ पुरुष, श्रमण या अन्य आरण्यक वासी को झूठ बोलकर ठगता है उसका पराभव होता है ।
6. जिसके पास बहुत सारा धन -धान्य होने के होने बावजूद भी केवल वही अकेला उसका उपभोग करता है तो उसका पराभव होता है ।
7. जिसे अपनी जाती का, धन का, गोत्र का अभिमान हैं और इसी भाव में रहकर वह अपने भाई बन्धुओं को तिरस्कृत करता है – यह उसकी अवनति का मुख्य कारण है ।
8.जो व्यक्ति स्त्रियों के पीछे भागता रहता है , शराबी तथा जुआरी है , कमाये हुये धन को फ़िजूल मे खर्च कर देता है –उसकी अवनति का कारण निशचित है ।
9. जो व्यक्ति अपनी पत्नी से असन्तुष्ट रह्ता है तथा वेशयाओं और पराई स्त्रियों के साथ दिखाई देता है – यह उसकी अवनति का मुख्य कारण है ।
10. यौवन समाप्त होने पर जब व्यक्ति नवयुवती को लाता है तो उसकी ईर्ष्या के कारण वह नही सो सकता – यह उसकी अवनति का मुख्य कारण है ।
11. किसी उडाऊ एवं खर्चीली स्त्री या पुरुष को जो धन का रखवाला बना देता है, उसका पराभव होता है ।
12. उत्तम कुल मे उत्पन्न तथा अति मह्त्वाकांक्षी , अल्प सम्पति साधन वाला पुरुष जब राज्य की कामना करता है तो उसका पराभव होता है ।
Thursday, March 28, 2024
जेन स्टोरी : टूटा हुआ कप
जेन स्टोरी
Monday, March 25, 2024
।।होली बनाम फाल्गुन पूर्णिमा।।
Sunday, March 24, 2024
🌹फागुन पूर्णिमा का महत्त्व🌹
Sunday, March 10, 2024
🌹करणीयमेत्त सुत्त🌹 'मेत्ता सुत्त'